Monday, September 25, 2023
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14 अप्रैल डॉ आंबेडकर जयंती पर विशेष, डॉ भीमराव आंबेडकर थे संवैधानिक हक के सूत्रधार

डॉ श्रीगोपाल नारसन एडवोकेट
डॉ भीम राव अम्बेडकर को संवैधानिक हक का सूत्रधार कहे तो गलत नही होगा।सामाजिक चिंतक डॉ. बाबा साहेब भीम राव आंबेडकर का राष्ट्र प्रेम और देश व समाज के लिए अनुकरणीय सेवा सदा याद की जाती रहेगी। अम्बेडकर एक प्रख्यात विधि मनीषी, समाज सेवक, नायक, विद्वान, दार्शनिक, वैज्ञानिक, एवं धैर्यवान बौद्धिक व्यक्तित्व के धनी थे। उन्होंने अपना जीवन समग्र भारत के कल्याण कामना हेतु उत्सर्ग कर दिया। विशेषकर 80 प्रतिशत उन दलित, सामाजिक व आर्थिक तौर से अभिशप्त लोगो के लिए, जिन्हें शोषण व पिछड़ेपन के अभिशाप से मुक्ति दिलाना ही डॉ. आंबेडकर का जीवन संकल्प रहा।

समाज को बराबरी का हक दिलाने वाले डॉ. भीमराव आंबेडकर का जन्म 14 अप्रैल सन 1891 को महू में सूबेदार रामजी शकपाल एवं भीमाबाई की चौदहवीं संतान के रूप में हुआ था।बचपन से ही उनके व्यक्तित्व में स्मरण शक्ति की प्रखरता, बुद्धिमत्ता, ईमानदारी, सच्चाई, नियमितता, दृढ़ता का प्रभाव रहा। डॉ भीमराव सातारा गांव के एक ब्राह्मण शिक्षक को बेहद प्रिय रहे। ये शिक्षक ही डॉ आंबेडकर के लिए उनपर सामाजिक अत्याचार और लांछन की तेज धूप में  बादल रूपी छांव  बन गए थे। डॉ. आंबेडकर की सोच थी कि, समाज को श्रेणीविहीन और वर्णविहीन करना होगा क्योंकि श्रेणी ने इंसान को दरिद्र और वर्ण ने इंसान को दलित बना दिया है। जिनके पास कुछ भी नहीं है, वे लोग दरिद्र माने गए और जो लोग कुछ भी नहीं है, वे दलित समझे जाते थे।

बाबा साहेब ने इसी भेदभाव के प्रति संघर्ष का बिगुल बजाकर समाज को जागरूक करने की कोशिश की।वे कहते थे कि, छीने हुए अधिकार भीख में नहीं मिलते, अधिकार वसूल करना होता है। उन्होंने कहा था, हिन्दुत्व की गौरव वृद्धि में वशिष्ठ जैसे ब्राह्मण, राम जैसे क्षत्रिय, हर्ष की तरह वैश्य और तुकाराम जैसे शूद्र लोगों ने अपनी साधना का प्रतिफल जोड़ा है।

उनका हिन्दुत्व दीवारों में घिरा हुआ नहीं है, बल्कि ग्रहिष्णु, सहिष्णु व चलिष्णु है।बड़ौदा के महाराजा सयाजीराव गायकवाड़ ने भीमराव आंबेडकर को मेधावी छात्र के नाते छात्रवृत्ति देकर सन 1913 में विदेश में उच्च शिक्षा के लिए भेज दिया था। उन्होंने अमेरिका के कोलंबिया विश्वविद्यालय में राजनीति विज्ञान, समाजशास्त्र, मानव विज्ञान, दर्शन और अर्थ नीति का  अध्ययन किया और विद्वता हासिल की।चूंकि विदेश में भारतीय समाज का अभिशाप और जन्मसूत्र से प्राप्त अस्पृश्यता की कालिख नहीं थी। इसलिए उन्होंने अमेरिका में एक नई दुनिया के दर्शन किए।बाबासाहेब अम्बेडकर की विद्वता का प्रमाण यह है कि वे 64 विषयों में मास्टर थे। वे हिन्दी, पाली, संस्कृत, अंग्रेजी, फ्रेंच, जर्मन, मराठी, पर्शियन और गुजराती जैसे 9 भाषाओँ के जानकार थे। उन्होंने 21 साल तक विश्व के सभी धर्मों को लेकर तुलनात्मक अध्ययन किया था।

बाबासाहेब ने लंदन स्कूल ऑफ इकॉनॉमिक्स में 8 वर्ष में समाप्त होनेवाली पढाई मात्र 2 वर्ष 3 महीने में पूरी की। इसके लिए उन्होंने प्रतिदिन 21-21 घंटे पढ़ाई की थी।डॉ. बाबासाहेब अम्बेडकर का अपने 8,50,000 समर्थको के साथ बौद्ध धर्म में दीक्षा लेना विश्व में एक ऐतिहासिक घटना थी, क्योंकि यह विश्व का सबसे बडा धर्मांतरण था।बाबासाहेब को बौद्ध धर्म की दीक्षा देनेवाले महान बौद्ध भिक्षु “महंत वीर चंद्रमणी” ने उन्हें “इस युग का आधुनिक बुद्ध” कहा था।

लंदन स्कूल ऑफ इकॉनॉमिक्स से “डॉक्टर ऑल साइंस” नामक  डॉक्टरेट की डिग्री प्राप्त करनेवाले बाबासाहेब विश्व के पहले और एकमात्र महापुरूष रहे हैं।डॉ. आंबेडकर ने अमेरिका की एक सेमिनार में भारतीय जाति विभाजन पर अपना मशहूर शोध-पत्र पढ़ा, जिसमें उनके व्यक्तित्व की खूब प्रशंसा हुई।

सर्वसम्मति से डॉ. आंबेडकर को संविधान सभा की प्रारूपण समिति का अध्यक्ष चुना गया। 26 नवंबर सन1949 को डॉ. आंबेडकर के नेतृत्व में (315 अनुच्छेद का) भारतीय संविधान पारित हुआ।डॉ भीम राव आंबेडकर मधुमेह से पीडि़त हो गए थे। दुर्भाग्यपूर्ण रूप से 6 दिसंबर सन 1956 को उनकी मृत्यु दिल्ली में सोते समय  घर पर ही हो गई।सन 1990 में उन्हें मरणोपरांत भारत के सर्वोच्च नागरिक सम्मान भारत रत्न से विभूषित किया गया।

डॉ. आंबेडकर का धेय था कि सामाजिक असमानता दूर करके दलितों के मानवाधिकार  प्रतिष्ठा करना।जिसमे वे काफी हद तक सफल भी रहे। डॉ. आंबेडकर ने  सावधान किया था कि, 26 जनवरी सन1950 को हम परस्पर विरोधी जीवन में प्रवेश कर रहे हैं। हमारे राजनीतिक क्षेत्र में समानता रहेगी किंतु सामाजिक और आर्थिक क्षेत्र में असमानता रहेगी। जल्द से जल्द हमें इस परस्पर विरोधता को दूर करना होगा।हम कह सकते है कि समय के साथ इसमें काफी कमी आई है और हम डॉ आंबेडकर के सपनो को पूरा करने में सफल भी रहे है।लेकिन अभी भी बहुत कुछ होना बाकी है।डॉ आंबेडकर के लिखे संविधान की मूल भावना के अनुरूप अभी भी लोकतंत्र का वह स्वरूप नही बन पाया,जिसकी तहत समाज का आखिरी व्यक्ति भी जनप्रतिनिधि चुना जा सके।जिसके लिए हमे चुनाव व्यवस्था व धन बल की राजनीति में व्यापक सुधार लाने होंगे।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार)

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